Sunday, June 15, 2014

आपकी टाइटिल क्या है.....मेरा मतलब, आपकी जाति क्या है.?

प्रश्न : आप का नाम क्या है.?

उत्तर : जी, मेरा नाम तपन है.

प्रश्न : आपका पूरा नाम क्या है.?

उत्तर : तपन कुमार.

प्रश्न : आपकी टाइटिल क्या है.?

उत्तर : कुमार.

प्रश्न : मेरा मतलब, आपकी जाति क्या है.?

उत्तर : जी, मैं इंसान हूँ.

प्रश्न : तो क्या हम इंसान नहीं हैं.?

उत्तर : आपने इंसान के रूप में अपनी पहचान छ्चोड़ दी है. अब आप सिर्फ़ एक जाति है.

प्रश्न : अच्छा...!!! आपकी नज़र में इंसान होने की क्या पहचान है.?

उत्तर : इंसान वह है, जो इंसानों के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव ना मानता हो. लिंग, जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा या राष्ट्र इत्यादि से परे वो सबको एक-बराबर मानता हो.

प्रश्न : पर जाति तो खुद भगवान ने बनाई है, वेद, पुराण, गीता सब यही कहते हैं.

उत्तर : ठीक है, अगर इनमें लिखा है कि, ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, बाहू से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पैर से शूद्र पैदा होते हैं तो, आप मुझे ये बताइए कि, मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों आदि को किसने बनाया.? आपको क्या लगता है कि, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य धर्मों के लोगों को बनाने की अलग-अलग फ़ैक्टरियाँ हैं.? और इसी तरह अलग-अलग जाति, संप्रदाय, लिंग आदि के लोगों को बनाने की अलग-अलग फ़ैक्टरियाँ हैं.?

प्रश्न : इंसान को बनाता तो भगवान ही है.?

उत्तर : महोदय ! औरत और आदमी के मिलन से औरत के गर्भ में नये जीव का आगमन होता है. आदमी के एक बार इस क्रिया में योगदान देने के बाद सारी ज़िम्मेदारी औरत निभाती है. औरत के माध्यम से ही बच्चे के अंदर बाहरी तत्व प्रवेश करते हैं. औरत कुछ खाती-पीती है, तभी कोई तत्व बच्चे को मिलता है. इस प्रकार बच्चे पैदा करने में औरत की भूमिका का महत्व स्पष्ट है. लेकिन आपके ये सारे धर्म और ईश्वर बच्चे के ऊपर माँ के हक को पुरूष से कम मानते हैं.

प्रश्न : मगर औरत आदमी को अलग-अलग तो कुदरत ने ही बनाया है.?

उत्तर : बेशक बनाया है. लेकिन इसलिए नहीं कि वो एक दूसरे को कमतर समझे और आपस में बैर रखें. बल्कि इसलिए बनाया है, ताकि वे एक-दूसरे को बराबर अधिकार और सम्मान देते हुए आपसी सहयोग से सृष्टि को आगे गतिशील रखें.

प्रश्न : लेकिन कुल को तारने के लिए तो बेटे की ही ज़रूरत होती है.?

उत्तर : महोदय ! कुल को तो तब तारेंगे ना, जब वो पैदा होगा.? और कुल के पैदा होने में लड़के का ही सिर्फ़ योगदान तो होता नहीं है. मरने के बाद कौन कहाँ और किस गति को प्राप्त होता है, यह स्पष्ट नहीं है. तो क्यों ना हम मौत से ज़्यादा जिंदगी को अहमियत दें.?

प्रश्न : तो क्या संतान पैदा करने में पुरूष की भूमिका कम होती है.?

उत्तर : बिल्कुल नहीं. अगर महिला 9 महीने अपने गर्भ में बच्चे को पालती है तो, पुरूष भी उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने का अपना कर्तव्य निभाता है. संतान के पालन-पोषण में स्त्री-पुरूष दोनों का समान महत्व है.

प्रश्न : जब महिला को बच्चा पैदा करने के लिए घर में रहना आवश्यक है तो फिर उसकी बाहर निकलकर काम करने की ज़िद क्या जायज़ है.?

उत्तर : महिला सिर्फ़ बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं है, एक-दो बच्चे काफ़ी होते हैं. और अगर एक कार्यालय में 20 महिलायें काम करती हैं तो सभी एक साथ गर्भवती नहीं होंगी. इसलिए महिला का बाहर निकल कर काम करना बिल्कुल जायज़ है.

प्रश्न : काला-गोरा, कमजोर-मजबूत तो भगवान ने बनाया है, फिर असमानता तो होगी ही.?

उत्तर : जी नहीं. बच्चे में किसी भी गुण के आने के लिए वंशानुक्रम और वातावरण ज़िम्मेदार है. इन्हीं के आधार पर सब कुछ तय होता है. गरम प्रदेशों के लोग शीत प्रदेशों के लोगों की अपेक्षा काले पैदा होते हैं. अगर बच्चे तथाकथित भगवान पैदा करता तो निहायत ही काले जोड़ो का बच्चा हमेशा काला ही नहीं पैदा होता. वो भी कभी-कभी ईश्वरीय चमत्कार से अँग्रेज़ों की तरह गोरा पैदा होता. रही बात सबके असमान पैदा होने की तो उसका भी अपना एक महत्व है. एक अस्पताल में गंदगी साफ करने वाले सफाईकर्मी का काम भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उस अस्पताल के डॉक्टर का. इसलिए सभी असमान लोग मिल कर सहयोग पूर्वक काम करके समाज को अच्छी दिशा दे सकते हैं. बशर्ते सभी को समान महत्व और अधिकार प्रदान किए जाए.
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