Sunday, June 22, 2014

चीन ने कहा कि भारत के सीमाई विवाद को निपटा लिया गया है

चीन ने कहा
कि सीमाओं से लगते 14 में से 12 देशों के
सीमाई विवाद को निपटा लिया गया है 
इस में भारत और भूटान भी शामिल हैं 

क्या ये सच है ?

ऐसा कब हुआ ?

यदि ऐसा हो गया
तो फिर हमारे इलाके में
हाल ही में
चीन की तरफ से
गोलाबारी की वारदातें
किस खुशी में की गईं ? आप सभी बुद्धीजीवियों की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा 




China ne kaha
ki seemaaon se lagte
14 mein se 12 deshon ke
seemaaee vivaad ko
nipta Liya gya hai.
Is mein
Bharat aur Bhutan
bhee shaamil hain.

Kya ye sachh hai
Aisa KB hua
Ydi aisa ho gya
to fir
hmaare ilaake mein
abhee
haal hee mein
china ke trf se
firing kee vaardaatein
kis khushee mein
kee gyeen

Aap sabhee budhijeewiyon ki
prtikriya ka intzaar rahega 

Saturday, June 21, 2014

BAHYA VIDY & BRAHMA VIDYA

Knowledge can be considered as having two aspects: Baahya Vidya and Brahma Vidya. Baahya Vidya provides the wherewithal for human livelihood. You can study many subjects, earn valuable degrees, acquire lucrative job and manage to spend your life with no worry and fear. This type of Vidya helps you perform whatever job you may doing, be it that of a humble clerk or a prime minister. Brahma Vidya, on the other hand, endows you with the strength, that will enable you to discharge successfully the duty you owe to yourself. It lays down the path which leads both to joy in worldly relations and bliss in the life beyond. Therefore, Brahma Vidya is far superior to all Vidya available to man on earth.

EGOISM IS OF THE EART, NOT OF HEAVEN & NARKA IS THE SON OF EARTH

Egoism is of the earth, earthy; not of heaven, heavenly. So, Naraka is the son of the Earth. And, be is called Nara ka, Nara means, man, who knows his Manas (mind), who practises Manana (discriminating reflection on what he has heard and what he has been taught). But, naraka which also means hell, is the name appropriate to one who believes he is the body and toils to cater to its needs and its clamour. When man grows in physical strength, economic power, mental alacrity, intellectual scholar-ship and political authority, and, does not grow in spiritual riches, he becomes a danger to society and s calamity to himself. He is a Naraka to his neighbours and his kin. He sees only the many, not the One; he is drawn by the scintillating manifold into the downward path of perdition. A suras have another name in Sanskrit Nakthancharas, 
 those who move about in the dark. This is a fair description of their A pathetic condition. They have no light to guide them; they do not recognise that, they are in the dark; they do not call out for light; they are unaware of the Light. Their intellect has become the bond slave of their passions and their senses, instead of establishing itself as their master. When at last, Truth appears before them and over¬whelms them, they recognise the One and merge happily in it.

Friday, June 20, 2014

हिंदी

मेरे परम प्रिय एवं अभिन्न मित्र ने आज कुछ ऐसा पोस्ट कर दिया फेस बुक पर कि उस पर टिप्पणी करना मैं अत्यावश्यक समझता हूँ

आप सब को पूरा मामला समझ आ जाए इस लिए पहले मैं मित्र सुधीर बट्टा जी द्वारा पोस्ट की गई सामग्री आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ और फिर उस के बाद अपनी टिपण्णी, इस विनम्र आग्रह के साथ कि फेस बुक का बुद्धि जीवी वर्ग इस बारे में अपनी राय अधिक से अधिक संख्या में अवश्य दे कर आगे के लिए मर्ग प्रशस्त करेगा 
____________________________________________________
श्री सुधीर बट्टा जी लिखते हैं
====================
"I too proud speaker of Hindi"........
Many are not aware that we spent Rs. 50 million in 1977 to enable Mr. Vajpayee,the then Foreign Minister ,to speak in Hindi,for a few minutes,at the UN....The country pays for an unnecessary show nationalism and ego.....At home this is "OK'....We cant progress globally by speaking in a language that has the same word "Yesterday" and "Tomorrow".
______________________________________________________________
मेरी विनयपूर्वक टिप्पणी
======================
मित्र
मैं आपकी बात से बिलकुल भी सहमत नहीं हूँ
  सबसे पहले तो आपने एक उदाहरण दिया "कल" का  yesterday and tomorrow
के संदर्भ में
इस प्रकार के नाम मात्र गिनती के उदाहरण हो सकते हैं हिंदी के लिए
परन्तु
 "UNCLE"  और "AUNTI"  के बारे में आप क्या कहेंगे की चाचा, ताया, फूफा, मौसा, मामा, मामी,बुआ,मौसी,ताई इत्यादि के लिए क्या "आंगल" भाषा में कोई उपयुक्त शब्द हैं ?

अरे मेरे भाई हिंदी जो की संस्कृत से जन्मी है उसका शब्दकोश तो इतना विस्तृत है की गणना करना भी शायद मुश्किल होगा जब से विश्व में संस्कृत भाषा का प्रदुर्भाव हुआ है करोड़ों ये अरबों नहीं अब तक हज़ारो खरब शब्द देवनागरी(संस्कृत) के प्रयोग हो चुके हैं जब कि आंगल भाषा में ये आंकड़ा मात्र कुछ करोड़ पर अटका हुआ है

अब तो शायद आपको विदित होगा कि वैज्ञानिकों ने भी हिंदी को सबसे समृद्ध भाषा मान लिया है और यह सर्वविदित ( मैं साक्षर और शिक्षित समुदाय की बात कर रहा हूँ) है कि कम्प्यूटर ने मात्र संस्कृत (देवनागरी) को ही विश्व की किसी भी भाषा के अनुवाद के लिए सक्षम माना है

और एक तथ्य आप को और बता दूँ विश्व की लगभग सभी भाषाएँ संस्कृत से ही उतपन्न हुई हैं और आपकी आंगल भाषा भी इस तथ्य से अछूती नहीं और आप को यह तो ज्ञात ही होगा कि संस्कृत एक भाषा है जिसके लिपि देवनागरी है और हिंदी कि लिपि भी देवनागरी ही है

अत: मात्र एक आध उदाहरण दे कर हिंदी जो कि हमारी मातृ भाषा भी है उसका अपमान मत करिये ये मेरा विनम्र आग्रह है

अब आईये विदेशों में अत्यधिक खर्च कर के हिंदी में अपनी बात कहने पर
आज हमारा देश किस-किस मुद्दे पर खर्च नहीं कर रहा

विशिष्ट लोगों की अकारण विदेश यात्रा
सुरक्षा
पर्यावरण
.
.
.
खेलें
.
.
वैज्ञानिक खोजें 
(जबकि आज केवल Research  अर्थात  Re-search  हो रही है , Search  अर्थात खोज तो हमारे ऋषी मुनी हज़ारों लाखों साल पहले कर चुके हैं जो सब वेदों में वर्णित है)
.
.
चिकित्सा
(इस पर भी हमारे चरक, वाग्भट्ट, और अन्य अनगिनित आयुर्वेदाचार्यों और ऋषियों ने बहुत कुछ शोध कर के वेदों में लिख रखा है और आश्चर्य की बात है कि आज की चिकित्सा  प्रणाली चाहे वो शल्य चिकित्सा हो अथवा औषध विज्ञान अथवा किसी भी और क्षेत्र का संज्ञान, उस लाखों वर्ष पूर्व लिखे किसी भी सूत्र को ना तो काट पाया, ना  गलत सिद्ध कर पाया, और ना ही कुछ नया खोज पाया)
.
.
ऐसे ही और भी ना जाने कितने क्षेत्र हैं जिन पर हमारी सरकार अनाप शनाप खर्च कर रही है और बरसों से करती रही है यही कारण है की हम दिन पर दिन पिछड़ रहे हैं


अत: अंत में निवेदन है कि हिंदी के प्रयोग से देश का कुछ भी अनिष्ट नहीं होने वाला हां इस से विश्व में हमारी प्रतिष्ठा अवश्य बढ़ रही है और बढ़ेगी अत: इस बात का विरोध छोड़ कर किसी सार्थक मुद्दे (विषय)पर चर्चा करें तो अधिक समीचीन होगा

Sunday, June 15, 2014

एक बार एक जर्मन , एक
पाकिस्तानी और एक
सरदार जी अरब देश में
शराब पीते हुए पकड़े गए ,
इसके लिए वहां के शेख ने
उन्हें 20-20 कोड़े मारने
की सजा सुनाई , सजा से
पहले शेख ने कहा की " आज
मेरी बेगम की सालगिरह है
और वो चाहती है
की अपनी सजा से पहले तुम
लोग एक एक मन्नत मांग
लो "....... जर्मन ने
कहा की मेरी पीठ पर एक
तकिया बाँध
दिया जाये......लेकिन ­
तकिया ज्यादा देर तक
नही टिका और उसे 10 कोड़े
अपनी पीठ पर
ही खाने ...पड़े....
पाकिस्तानी ये देखकर डर
गया और
बोला की मेरी पीठ पर 2
तकिये बाँधे जाएँ......लेकिन
वो भी ज्यादा देर नही चले
और उसे 8 कोड़े अपनी पीठ
पर खाने पड़े .......
जब सरदार
जी की बारी आई तो शेख ने
कहा की तुम दुनिया के बेहद
खूबसूरत देश से आये
हो जो अपनी अहिंसा के
लिए जाना जाता है , तुम
एक नही दो मन्नत मांग
सकते हो......सरदार जी ने
सर झुकाकर बहुत नरमी से
कहा में आपका एहतराम
करता हूँ और इस नवाजिश के
बदले 20 नही , 100
कोड़ों की मांग
करता हूँ.......शेख ने
आश्चर्यचकित होते हुए
पूछा की तुम्हारी दूसरी ख्वाहिश
क्या है ?
सरदार जी ने फिर से सर
झुकाकर मुस्कराते हुए
कहा ......
मेरी दूसरी ख्वाहिश ये है
की ...........मेरी पीठ पर
पाकिस्तानी को बाँध
दिया जाये!!
टीचर : सारे जोक सरदारों पर क्यूँ बनते हैं ?

एक सिख स्टूडेंट : एक तो जब देश में मुगलों का शासन था तो उनसे अपनी बहु बेटियों और धर्म बचाने की ज़रूरत थी। तो सिखों ने अपनी और अपने परिवारों की कुर्बानियां देकर बचाया।

फिर अंग्रेजों से देश की आज़ादी के लिए सिखों ने कुर्बानियां दी।

आज़ादी मिल गई अब समस्या भूख की आई देश में तो सिखों ने 90% अनाज पैदा करके भूख की समस्या ख़त्म की।

भूख मिटी तो देश हँसना चाहता था तो ९०% जोक्स भी सरदारों पर व्यंग बने.......

सारे जोकेस खंग्रेस्स ने बनाए

यानि
सरदार है तो इज्ज़त हैं,
सरदार है तो सुरक्षा हैं,
सरदार है तो खाना हैं,
सरदार है तो घरों मंदिरों में पूजा हैं,
सरदार है तो देश की सीमाएं सुरक्षित हैं,
ये सरदार हैं तो ज़िन्दगी आसान हैं,

और

ये सरदार देश की शान हैं।

मैं तकरीबन २० साल के बाद विदेश से अपने शहर लौटा था ! बाज़ार में घुमते हुए सहसा मेरी नज़रें
सब्जी का ठेला लगाये एक बूढे पर जा टिकीं,बहुत कोशिश के बावजूद भी मैं उसको पहचान
नहीं पा रहा था ! लेकिन न जाने ऐसा क्यों लग रहा था की मैं उसे बड़ी अच्छी तरह से जानता हूँ !
मेरी उत्सुकता उस बूढ़े से भी छुपी न रही , उसके चेहरे पर आई अचानक मुस्कान से मैं समझ
गया था कि उसने मुझे पहचान लिया था !
काफी देर की कशमकश के बाद जब मैंने उसे पहचाना तो मेरे पाँव के नीचे से मानो ज़मीन
खिसक गई ! जब मैं विदेश गया था तो इसकी बहुत बड़ी आटा मिल हुआ करती थी नौकर चाकर
आगे पीछे घूमा करते थे !धर्म कर्म, दान पुण्य में सब से अग्रणी इस दानवीर पुरुष को मैं
ताऊजी कह कर बुलाया करता था !
वही आटा मिल का मालिक और आज सब्जी का ठेला लगाने पर मजबूर?
मुझ से रहा नहीं गया और मैं उसके पास जा पहुँचा और बहुत मुश्किल से रुंधे गले से पूछा :
"ताऊ जी, ये सब कैसे हो गया ?"

भरी ऑंखें लिए मेरे कंधे पर हाथ रख उसने उत्तर दिया….

"बच्चे बड़े हो गए हैं बेटा !"

मानसिक रोगी---पागलखाने मेँ लोहे के ऊँचे खंभे पे एक पागल चढ़ गया। 
लोगो ने उसे उतरने के लिये कहा। 
पर वो नहीं उतरा।
किसी ने कहा कि उतर नहीं तो गोली मार दूँगा।
फिर भी नहीं उतरा। 

सब लोग सारे प्रयास करके हार गये 

तभी दिग्गीराजा आये। 
उन्होने पागल से कहा 
कि अगर नहीँ उतरोगे 
तो इस छोटी कैंची से 
इस खंबे को काट दूंगा। 

इतना सुनते ही 
पागल तुरंत उतर आया। 

सबने दिग्गी की खूब तारीफ की। 

फिर सबने पागल से पूछा 
कि हमलोग कितना भी डरा-धमका लिये,
गोली मारने की धमकी दे दिये।
पर तुम नहीं उतरे।


लेकिन दिग्गीराजा ने 

छोटी कैंची से 
इतने मोटे खंबे को काटने को कहा 
और
तुम उतर गये।
ऐसा क्यों?? 


तब पागल ने कहा-

आपलोग दीमागी तौर पे स्वस्थ हो।
भरोसा था की आप कुछ नहीँ करोगे। 

लेकिन ये तो दीमागी तौर पे मेरे जैसा है,
ये तो कुछ भी कर देता।
..
..

पत्थर तब तक सलामत है जब तक वो पर्वत से जुड़ा है.
पत्ता तब तक सलामत है जब तक वो पेड़ से जुड़ा है.
इंसान तब तक सलामत है जब तक वो परिवार से जुड़ा है
क्योंकि परिवार से अलग होकर आज़ादी तो मिल जाती है लेकिन संस्कार चले जाते हैं...

..
क्या गुज़री होगी उस बुढ़ी माँ के दिल पर जब उसकी बहु ने कहा -: "माँ जी, आप अपना खाना बना लेना, मुझे और इन्हें आज एक पार्टी में जाना है.!!"

बुढ़ी माँ ने कहा -: "बेटी मुझे गैस चुल्हा चलाना नहीं आता.!"

तो बेटे ने कहा -: "माँ, पास वाले मंदिर में आज भंडारा है, तुम वहाँ चली जाओ खाना बनाने की कोई नौबत ही नहीं आयेगी.!"

माँ चुपचाप अपनी चप्पल पहन कर मंदिर की ओर हो चली गयी

यह पुरा वाक्या 10 साल का बेटा रोहन सुन रहा था |

पार्टी में जाते वक्त रास्ते में रोहन ने अपने पापा से कहा -: "पापा, मैं जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ना तब मैं भी अपना घर किसी मंदिर के पास ही बनाऊंगा.!"

माँ ने उत्सुकतावश पुछा -: "क्यों बेटा?"
.
.
.
रोहन ने जो जवाब दिया उसे सुनकर उस बेटे और बहु का सिर शर्म से नीचे झूक गया.

रोहन ने कहा -: "क्योंकि माँ, जब मुझे भी किसी दिन ऐसी ही किसी पार्टी में जाना होगा तब तुम भी तो किसी मंदिर में भंडारे में खाना खाने जाओगी ना और मैं नहीं चाहता कि तुम्हें कहीं दूर मंदिर में जाना पड़े.!"


  1. एक आदमी मर गया. जब उसे महसूस हुआ तो उसने देखा कि भगवान उसके पास आ रहे हैं और उनके हाथ में एक सूट केस है.

    भगवान ने कहा --पुत्र चलो अब समय हो गया.

    आश्चर्यचकित होकर आदमी ने जबाव दिया -- अभी इतनी जल्दी? अभी तो मुझे बहुत काम करने हैं. मैं क्षमा चाहता हूँ किन्तु अभी चलने का समय नहीं है. आपके इस सूट केस में क्या है?

    भगवान ने कहा -- तुम्हारा सामान.

    मेरा सामान? आपका मतलब है कि मेरी वस्तुएं, मेरे कपडे, मेरा धन?

    भगवान ने प्रत्युत्तर में कहा -- ये वस्तुएं तुम्हारी नहीं हैं. ये तो पृथ्वी से सम्बंधित हैं.

    आदमी ने पूछा -- मेरी यादें?

    भगवान ने जबाव दिया -- वे तो कभी भी तुम्हारी नहीं थीं. वे तो समय की थीं.

    फिर तो ये मेरी बुद्धिमत्ता होंगी?

    भगवान ने फिर कहा -- वह तो तुम्हारी कभी भी नहीं थीं. वे तो परिस्थिति जन्य थीं.

    तो ये मेरा परिवार और मित्र हैं?

    भगवान ने जबाव दिया -- क्षमा करो वे तो कभी भी तुम्हारे नहीं थे. वे तो राह में मिलने वाले पथिक थे.

    फिर तो निश्चित ही यह मेरा शरीर होगा?

    भगवान ने मुस्कुरा कर कहा -- वह तो कभी भी तुम्हारा नहीं हो सकता क्योंकि वह तो राख है.

    तो क्या यह मेरी आत्मा है?

    नहीं वह तो मेरी है --- भगवान ने कहा.

    भयभीत होकर आदमी ने भगवान के हाथ से सूट केस ले लिया और उसे खोल दिया यह देखने के लिए कि सूट केस में क्या है. वह सूट केस खाली था.

    आदमी की आँखों में आंसू आ गए और उसने कहा -- मेरे पास कभी भी कुछ नहीं था.

    भगवान ने जबाव दिया -- यही सत्य है. प्रत्येक क्षण जो तुमने जिया, वही तुम्हारा था. जिंदगी क्षणिक है और वे ही क्षण तुम्हारे हैं.

    इस कारण जो भी समय आपके पास है, उसे भरपूर जियें. आज में जियें. अपनी जिंदगी जिए.

    खुश होना कभी न भूलें, यही एक बात महत्त्व रखती है.

    भौतिक वस्तुएं और जिस भी चीज के लिए आप यहाँ लड़ते हैं, मेहनत करते हैं...आप यहाँ से कुछ भी नहीं ले जा सकते हैं.
" जितनी भीड़ ,
बढ़ रही
ज़माने में..।
लोग उतनें ही,
अकेले होते
जा रहे हे...।।।
" जितनी भीड़ ,
बढ़ रही
ज़माने में..।
लोग उतनें ही,
अकेले होते
जा रहे हे...।।।

आपकी टाइटिल क्या है.....मेरा मतलब, आपकी जाति क्या है.?

प्रश्न : आप का नाम क्या है.?

उत्तर : जी, मेरा नाम तपन है.

प्रश्न : आपका पूरा नाम क्या है.?

उत्तर : तपन कुमार.

प्रश्न : आपकी टाइटिल क्या है.?

उत्तर : कुमार.

प्रश्न : मेरा मतलब, आपकी जाति क्या है.?

उत्तर : जी, मैं इंसान हूँ.

प्रश्न : तो क्या हम इंसान नहीं हैं.?

उत्तर : आपने इंसान के रूप में अपनी पहचान छ्चोड़ दी है. अब आप सिर्फ़ एक जाति है.

प्रश्न : अच्छा...!!! आपकी नज़र में इंसान होने की क्या पहचान है.?

उत्तर : इंसान वह है, जो इंसानों के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव ना मानता हो. लिंग, जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा या राष्ट्र इत्यादि से परे वो सबको एक-बराबर मानता हो.

प्रश्न : पर जाति तो खुद भगवान ने बनाई है, वेद, पुराण, गीता सब यही कहते हैं.

उत्तर : ठीक है, अगर इनमें लिखा है कि, ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, बाहू से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पैर से शूद्र पैदा होते हैं तो, आप मुझे ये बताइए कि, मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों आदि को किसने बनाया.? आपको क्या लगता है कि, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य धर्मों के लोगों को बनाने की अलग-अलग फ़ैक्टरियाँ हैं.? और इसी तरह अलग-अलग जाति, संप्रदाय, लिंग आदि के लोगों को बनाने की अलग-अलग फ़ैक्टरियाँ हैं.?

प्रश्न : इंसान को बनाता तो भगवान ही है.?

उत्तर : महोदय ! औरत और आदमी के मिलन से औरत के गर्भ में नये जीव का आगमन होता है. आदमी के एक बार इस क्रिया में योगदान देने के बाद सारी ज़िम्मेदारी औरत निभाती है. औरत के माध्यम से ही बच्चे के अंदर बाहरी तत्व प्रवेश करते हैं. औरत कुछ खाती-पीती है, तभी कोई तत्व बच्चे को मिलता है. इस प्रकार बच्चे पैदा करने में औरत की भूमिका का महत्व स्पष्ट है. लेकिन आपके ये सारे धर्म और ईश्वर बच्चे के ऊपर माँ के हक को पुरूष से कम मानते हैं.

प्रश्न : मगर औरत आदमी को अलग-अलग तो कुदरत ने ही बनाया है.?

उत्तर : बेशक बनाया है. लेकिन इसलिए नहीं कि वो एक दूसरे को कमतर समझे और आपस में बैर रखें. बल्कि इसलिए बनाया है, ताकि वे एक-दूसरे को बराबर अधिकार और सम्मान देते हुए आपसी सहयोग से सृष्टि को आगे गतिशील रखें.

प्रश्न : लेकिन कुल को तारने के लिए तो बेटे की ही ज़रूरत होती है.?

उत्तर : महोदय ! कुल को तो तब तारेंगे ना, जब वो पैदा होगा.? और कुल के पैदा होने में लड़के का ही सिर्फ़ योगदान तो होता नहीं है. मरने के बाद कौन कहाँ और किस गति को प्राप्त होता है, यह स्पष्ट नहीं है. तो क्यों ना हम मौत से ज़्यादा जिंदगी को अहमियत दें.?

प्रश्न : तो क्या संतान पैदा करने में पुरूष की भूमिका कम होती है.?

उत्तर : बिल्कुल नहीं. अगर महिला 9 महीने अपने गर्भ में बच्चे को पालती है तो, पुरूष भी उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने का अपना कर्तव्य निभाता है. संतान के पालन-पोषण में स्त्री-पुरूष दोनों का समान महत्व है.

प्रश्न : जब महिला को बच्चा पैदा करने के लिए घर में रहना आवश्यक है तो फिर उसकी बाहर निकलकर काम करने की ज़िद क्या जायज़ है.?

उत्तर : महिला सिर्फ़ बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं है, एक-दो बच्चे काफ़ी होते हैं. और अगर एक कार्यालय में 20 महिलायें काम करती हैं तो सभी एक साथ गर्भवती नहीं होंगी. इसलिए महिला का बाहर निकल कर काम करना बिल्कुल जायज़ है.

प्रश्न : काला-गोरा, कमजोर-मजबूत तो भगवान ने बनाया है, फिर असमानता तो होगी ही.?

उत्तर : जी नहीं. बच्चे में किसी भी गुण के आने के लिए वंशानुक्रम और वातावरण ज़िम्मेदार है. इन्हीं के आधार पर सब कुछ तय होता है. गरम प्रदेशों के लोग शीत प्रदेशों के लोगों की अपेक्षा काले पैदा होते हैं. अगर बच्चे तथाकथित भगवान पैदा करता तो निहायत ही काले जोड़ो का बच्चा हमेशा काला ही नहीं पैदा होता. वो भी कभी-कभी ईश्वरीय चमत्कार से अँग्रेज़ों की तरह गोरा पैदा होता. रही बात सबके असमान पैदा होने की तो उसका भी अपना एक महत्व है. एक अस्पताल में गंदगी साफ करने वाले सफाईकर्मी का काम भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उस अस्पताल के डॉक्टर का. इसलिए सभी असमान लोग मिल कर सहयोग पूर्वक काम करके समाज को अच्छी दिशा दे सकते हैं. बशर्ते सभी को समान महत्व और अधिकार प्रदान किए जाए.
 —

कद में तो साया भी इंसान से बड़ा होता है l

मनुष्य कितना मूर्ख है |
प्रार्थना करते समय समझता है कि भगवान सब सुन रहा है,
पर निंदा करते हुए ये भूल जाता है।
पुण्य करते समय यह समझता है कि भगवान देख रहा है,
पर पाप करते समय ये भूल जाता है।
दान करते हुए यह समझता है कि भगवान सब में बसता है,
पर चोरी करते हुए ये भूल जाता है।
प्रेम करते हुए यह समझता है कि पूरी दुनिया भगवान ने बनाई है,
पर नफरत करते हुए ये भूल जाता है।

.........और हम कहते हैं कि मनुष्य सबसे बुद्धिमान प्राणी है।
क़दर किरदार की होती है,
वरना...
कद में तो साया भी
इंसान से बड़ा होता है l

"अहिंसा परमो धर्मः धर्महिंसा तदैव च: l"

भारत में महाभारत का निम्नलिखित श्लोक
अधूरा क्यों पढाया जाता है ??
"अहिंसा परमो धर्मः"
जबकि पूर्ण श्लोक इस तरह से है।
"अहिंसा परमो धर्मः धर्महिंसा तदैव च: l"
अर्थात
अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है और धर्म की रक्षा के
लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है...!!!!